बगत रै रेलै साम्हीं

कीं नीं ठै’र सकै

सांसां रो सूत

टूटतां जेज नीं लागै

पण कुण सोचै बात

थकां आंख्यां

जे कोई बणै आंधो

तो उणनैं मारग कुण दिखावै?

अर जे दिखावै कोई

तो ईज कैवै

म्हैं दूजां रै बतायोड़ै मारग

क्यूं चालूं?

अैड़ा आखी जिनगाणी

भटकता रैवै

भटकता ईज रैसी।

स्रोत
  • पोथी : मन रो सरणाटो ,
  • सिरजक : इरशाद अज़ीज़ ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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