घण कंएं कै थूर नों कांटो जैर है
पण हँगरए थूर नीस् वाड़ करें
खेतर नै धैरवा
घोर नै बसाव्या।
कोई कैम हमजै
केनै भी ज़ैर
ज़ैर त मनक ने मन में भी रै
तारे थूर स् कैम गार खाए?
कोई हमज़तू नती
थूर नों परताप
हँगरं में आपड़ोस् परताप दैकाए।
वाड़ आदमी नँ हाड़कँ नी हौ
के थूर नीं
वाड़ स् रै नैं रोकै
सोपँ सोट्टैं।
हाड़कँ नी वाड़
जीव में ताज़ी लागै
केमके ई आपड़े डील नीं रै
नैं थूर कांटो लागे
केमके ई अबोलक रै
बेनो फरक हमज
मारा जीव।