सरणाटां रो शंखनाद

हांफल़िया

कदै सुणै मिनख?

सूनोड़ी सड़कां

रात भर रूनोड़ी

धरती रै

आंसुवां भीनोड़ी

लागै जाणै

हथणापुर में

द्रोपदी रै

काजल़ियै कोरां

टपक्योड़ा

निसकारां रै सागै

झरियोड़ा

नैणां सूं मोती मूंघोड़ा

कुण करै कूंत?

अंधसभा में आंरी

क्यूंकै

हथणापुर!में ढल़्योड़ी जाजमां जुवां री

सजियोड़ा मंडप

जनमन रै

सोनलिये सपनां रो चीर

लीर लीर कर

हरण करण नै

संभियोड़ा ऊभां है

अड़ीखंभ

जीभां रै बल़

कुरवंशी अर पांडव

एकमेक होय

बिनां खेद रै

भेद विहूणो

ले उणियारो

कुटल़ता रो

जाल़ बिछायोड़ा

हुती-अणहुती रो

मिटावण भरम

धरम नै विगोवण

न्हांखण

साच नै सांसै में

अर अधगावल़ो

हथणापुर

सात भायां री

बैन रै उनमान

कदै इन्नै

तो कदै उन्नै

फेरावण हाथ

अर ओढण ओढणो

पण उठै

खाली

थथूंबा

आवै है निगै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणयोड़ी ,
  • सिरजक : गिरधर दान दासोड़ी