थारी ओळ्यूं

म्हारै मांयलै थार में

फोग री जड़ ज्यूं

आडी-तिरछी धंसती

ऊंडी

मांयलै अंधारै रै बावजूद

जोय लेवै

म्हारी आंख्यां री कोरां रो

दो बूंद खारो पाणी

बदत री ताती लू सूं

खुद नैं बचाय’र

हरो राखणै सारू।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : आशीष पुरोहित ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै