आज एक और रात कट'गी

चकोरी की,

नींद कै ताई तरसती-तरसती

आँख्या मं!

तू ही बता कुण नै

ओळमो दे

थन्है तो काईं बी

वादों कर्‌यो छो म्हारै सूं,

फेर तू तो निर्दोष ही

रह ग्यो,

सारी-सारी रात दिवळा की नांईं

जळती रह छै आँख्यां,

फैर बी सारी की सारी रातां म्हारी तो,

अमावस ही छै,

कितना बरस बीत ग्या रे,

म्हारै लेखै तो

अंधेरो पखवाड़ों

बरसां को होग्यो

अेक अळाव जळ रियो छै भीतर,

कद आवैवगी म्हारी पूनम की रात

बिरह का तारा गिणतां-गिणतां

घिसगी आंगळ्यां की लकीरां

चाँद की बाट न्हाळतां

रातां गिणतां

माथा मं

चाँदणी आर बस'गी

काळी नागणी सी,

झूलती लटां गाला नै चूमती

इतराती थांक छी,

आज धोळी पड़'र

झुर्रियां में उलझ 'र,

करम फोड़ री छै!

गुलाब की पंखडियाँ सा होंठां पै,

बैठी छै नथ तितळी सी

मद रस चूमती,

तीनूं लोकां में

भाग सरा रही छी

टूट'र आळ्या मं पड़ी छै,

बरसा प्हैली सुपणां मं

परण लेग्यो म्हारो मन,

हर्‌या रंग को थारां

हाथां सूं फराहयो चुड़ल़ो

सुहागण बणा'र

ओढ़ायो छो लाल लूगडो

आज बी खूंटी पर टंग्यो-टंग्यो

लीर-लीर होग्यो

कुण नै ओळमो दे

जीवता-जीवत तो,

भूलबो घणो मुसकल छै

पण मरबा बी दे,

थांरै आबा की आस ...... !

स्रोत
  • सिरजक : मंजू कुमारी मेघवाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी