गैरी घाटी हेत री
जुग-जुग लाम्बा लोग
उथल-पाथल प्रेम-रस
सब नै पांवाधोक
हियै हिलोळा नाम रा
मूंडै मीठा बोल
भाठौ मन क्यूं बावड़ै
किण री मांडां ओक
थांरौ घर-घर आंगणौ
थांरी काया-अंग
थांरा मैड़ी गोखड़ा
चढ़ै न दूजौ रंग
अेक साध्यौ सब डूबग्या
सधी अेक नीं बात
बात-बात रै कारणै
अजब-गजब रा ढंग
कन्नी काटै आप सूं
टूंकै छांव खजूर
रैवै किण रै आसरै
बड़लो नांव हजूर!
इकतारौ गाया करै
धरम-करम री बात
मरवण रोवै रोवणा
सरवण साथै घात
ज्यूं आया सूं चालग्या
राजा रंक फकीर
छोडी नी चिंतारणी
वाह रे वाह तकदीर
नीं भूल्या नीं याद है
नीं पाया परमांण
थांरै सुख रै कारणै
मच्यौ मौत घमसांण!