थां नै कांई कैवा भायला, कीकर करां बखाण।

बै सवार है सागी, बै घोड़ा बै इै मदान।

अेकर तो लाग्यौ अबकाळै,

नवों सूरज ऊगैलो।

छोड़ किनारो, पार धार कर,

बीजै तट पूगैलो।

पण बै देख हवा रो रुख पतवार छोड़ बैठग्या,

लहरां खावै पछाड़ करै है आपस में घमसाण।

बैठ्या सोचै लोग कोई शिव,

पीण हलाहल आसी।

बण्या घाव नासूर उणां रै,

आय’र मलहम लगासी।

बधती जावै पीड़ सूकग्या, आँख्यां में आँसूड़ा,

फूट-फूट फाला पगल्यां रा होग्या लहू-लुहाण।

कदसी झपटो मारै सिकरो,

बैठ्या नजर गडायां।

कियां बचावै ज्यांन कमेड़ी,

और घणी अबखायां।

च्यारूं कांनी जाळ बिछ्या, फरियाद करै नै?

गोडी ढाळ पारधी बैठ्यौ, कसगे तीर कमाण।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मंगत बादल