अबै

मत मांग,

काळ-सी सीख

म्हारा भायला।

ठैर..!

जद तांई

थूं अर म्हैं

नीं हो जावां 'आप'

अेकाकार

मन-आतमा सूं

दूध-पाणी ज्यूं।

नींतर रैय जावांला

अेकल होवतां थकां

दोय न्यारा-निरवाळा

ओस रै टपकां ज्यूं।

बिलखतै तारां रै

तूटणै ज्यूं...

सैवणो पड़ैलो

दरद रो देस,

अेकला-अेकला नै

निरवाळो-निरवाळो

दिन-रात ज्यूं।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : राजू सारसर 'राज' ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham