जूण रै पगां चालता

कणा थक ज्यै कोई

कणा छक ज्यै कोई

नी बेरो।

पण इण थकणै

अर छकणै रै

बिचाळै जे

भेळी कर सकै

पीड़

चुग जगती सूं

काळज्यै थारै

तो थारो थकणो

अर छकणो

सारथक है।

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलादराय पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी