ठप-ठप ठपकारै कविता

झांझरकै सूं लगौलग

आज।

ठक-ठक करै

इंडा रै मांय

ज्यूं आखतौ बचियौ।

वेळा मिळी

तो उतार लेस्यूं

छिपतू।

नींतर

जावैला बारै

सिंझ्या तांईं

आपौआप।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कैलाश कबीर ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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