अब गांवां मैं बी
नई दिखै,
मार खाई सूजेड़ा शरीर वाली,
लूगड़ी रा पल्ला सूं
आँख्यां पूंछती लुगायां।
भागती-दौड़ती,
मरदां रा हुक्म बजाती
नई रवै रोंवती-सिसकती।
जिम्मेदारियां रै बीच
खटका सूं मोबाइल चलांवती,
कीड़ी री तरियां
घर नै समर्पित तो है
पण गलत नैं नई स्वीकारै।
मुस्किलां सूं हार मान कै
नई भागै तळाब री पाळ
अर कुवैं री मुंडेर पै,
लाज रो घूंघट उतार कै
खुद रा मान-सम्मान नैं
बचावण तांई
बोलण लागी...
नई जी नई....
घर वाळां री निजरां मैं
'जबान लड़ावण' लागी
आजकाल
स्याणी होंवती लुगायां।