म्हारै स्कूल रै
छोटै बाबू
अेक दिन
अेक सुवाल पूछ्यौ
म्हां सूं कै-
'अेक आदमी
आपनै घणौ चावै
अर दूजै आदमी नै
थे चावौ घणां...
दोनूं जद डूबै पाणी में
तद आप बचास्यौ किण नै?'
म्हूं सोच’र बोल्यौ-
'पै'लै आदमी नै
पै'ली बंचा स्यूं!'
बाबूजी पूछ्यौ-
'पै'लै नै पै'ली क्यूं,
दूजै नै क्यूं नीं?'
म्हूं बोल्यौ-
'पै'लै नै
पै'ली बंचाणौ जरूरी है,
नीं तो बींरो
भरोसो टूट जावैलो
म्हां माथै!
भरोसो है
तद प्रेम है,
अर प्रेम है
तद सो कीं है।