म्हारै स्कूल रै

छोटै बाबू

अेक दिन

अेक सुवाल पूछ्यौ

म्हां सूं कै-

'अेक आदमी

आपनै घणौ चावै

अर दूजै आदमी नै

थे चावौ घणां...

दोनूं जद डूबै पाणी में

तद आप बचास्यौ किण नै?'

म्हूं सोच’र बोल्यौ-

'पै'लै आदमी नै

पै'ली बंचा स्यूं!'

बाबूजी पूछ्यौ-

'पै'लै नै पै'ली क्यूं,

दूजै नै क्यूं नीं?'

म्हूं बोल्यौ-

'पै'लै नै

पै'ली बंचाणौ जरूरी है,

नीं तो बींरो

भरोसो टूट जावैलो

म्हां माथै!

भरोसो है

तद प्रेम है,

अर प्रेम है

तद सो कीं है।

स्रोत
  • सिरजक : दीनदयाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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