सरदी इत्ती बधगी

के जांणै रू-रू बरफ भरग्यौ

और तो और, आभे रौ

सूरज तक ठरग्यौ

दोपार हुयगी

पण सूरज आज

बादळां री राली ओढ'र सूतो है

घड़ी-घड़ी मूंडौ काढ'र देखे

दुनिया रौ काम सरू तो है

लोगां रौ जीव जांणै

के आज रौ काम कीकर सरग्यौ

सूरज निकळे

पण मुडदाल

ऊभौ रेयीजै नीं ठरियोड़ै तावड़ै

इण सूं तौ उन्हाळौ लाख बत्तौ

कद गरमी रा दिन बावड़ै

तप तापता कैवै लोग

अबकी तौ कायौ करग्यौ

पाड़ोसी बोल्यौ

ठंडौ बरफ पाणी

सिनांन करतां मौत आवै

ऊपर सू अैड़ौ बायरौ बाजै

लोकाचारियां वौ कींकर जावै

डोकरियौ भी देखौ

बैठौ-सूतौ कैडौ मरग्यौ!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : जुगल परिहार ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा
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