सूरज आज गेरग्यौ घर में,
अँधारै री डाक।
बीज्या आम दोसदां
कीं नै ऊगियाया आक॥
पड़ग्या क्यूं कमजोर,
ऊजळा आखर प्रीत रा?
फिरै भटकता कजळी बन में,
मिरगा गीत रा।
ढूंढै कांई चितराम आज वा
अर्जुन वाळी आँख?
मन रो सुवटो किण विध उडसी,
किणी कतरदी पाँख।
अै दिवलै रा बोपारी कुण,
किण देसां सूं आया?
गळी-गळी में बेचै सपनां,
लेवै लोग लुगायां।
काग निमोळी खायां जावै,
छोड छुआरा दाख।
बीच बजारां खड़ो कबीरो,
हाटां बिकगी साख।
लाम्बी ताण रुखाळा सोग्या,
खेत जीमगी बाड़।
सूंई साँझ में गुवाड़ बिचाळै,
कुण रोपी है राड़?
लिख्या जिका पानां माथै म्हे,
बण्या भाग रा आँक।
माँदी पड़गी आँच,
अँगारां ऊपर आगी राख।