म्हारी कूंट री परली ठौड़ रो दरसाव

तिस नै बधावै

अर म्हारै पांती रै तावड़ै नै

घणो गैरो करै।

थारी छियां

म्हारी अळकत बधावण सारू

कम नी पड़ै।

थनै अंगेजण री बधती इंच्छा

देखतां-देखतां तड़प बण जावै

जिकै में रेवै थारै नांव रो ताव...

ताव

तोड़ देवै केई दफै हदां-

थारी अर म्हारी कूंट बीचली!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरीश बी. शर्मा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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