सूखी छै नदी

नाव रेत मं चलाणी छै

लूण्यो तो प्हैली'ई काढल्यो

रई कोरी छाछ मं हलाणी छै

लाई काळज्या मं धूंधाड़ो सांसां मं

बरफ होठां पै आंख मं पाणी छै

कागज का पूतळा मं कोई नं खुसेड़ दी

सूयां सार की

मंतर जे जाणतो होवै तो बोले

कोई जाणतेरी

बांता बाकी तो सुणी सुणाई कहाणी छै।

स्रोत
  • पोथी : आंथ्योई नहीं दिन हाल ,
  • सिरजक : अम्बिका दत्त ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन