घाटी घाटी जंग मच्यौ हो

घर घर लागी आग

रणखेतां जद राता व्हैग्य

खूनां खेल्यौ फाग ओ।

वीरां खेल्यौ फाग भायलां, खूनां खेल्यौ फाग ओ!

बिना मूंड ही धड़ लड़ता हा

हाथां लियां कृपाण ओ।

रण में जोधा जद लड़ता हा

ले रणचंडी आण ओ।

तानसेन मत गा परभाती

गा रणभेरी राग ओ।

वीरां खेल्यौ...

हाथ्यां री चिंघाड़ बीच

जद चेतक रण में दौड़ै हो

मेवाड़ी असवार लाडलौ

सर दुसमण का फौड़ै हो

गोळयां सूं गुलाल उडै ही

(जद) तोपां उगळै आग ओ।

वीरां खेल्यौ...

रजपूती की लाज बचावण

वन वन भटक्यौ मेवाड़ी

मेहलातां रो मोह छोड़

ली आडावळ की वे आडी

पातळ खाणूं जमीं सोवणूं

धर आजादी की लाग ओ।

वीरां खेल्यौ फाग भायलां, खूनां खेल्यौ फाग ओ।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : जगदीशचन्द्र भट्ट ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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