सूंप दियौ

सौ कीं

म्हारै कनै कीं नीं

फगत

म्हारै सिर माथै

आपरौ हाथ!

म्हारै कनै

सौ कीं

होवतां थकां

कीं नीं हो

इज हौ

सो कीं।

स्रोत
  • पोथी : थारी मुळक म्हारी कविता ,
  • सिरजक : गौरी शंकर निम्मीवाल ,
  • प्रकाशक : एकता प्रकाशन
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