वै कैयो-
कांई मांडै रे मानखै सारू
च्यार ओळयां री कविता!
सिरज कोई सतसई
रच कोई रासो
बंधाव पछै सिरोपाव।
म्हैं कैयो—
आपरो हुकम सिर माथै
पण परनाळो तो अठै ईज पड़ैला।
क्यूंकै कविता नीं जी सकैला
सिरोपाव साथै।