कवियां आछी करी रै कतार

थांरै सिरजण री बळिहार!

खुणै बैठ रोवणौ मांड्यो

गया जमारौ हार

अपणो रोगौ तौ सह रोवै

थूं रौवै धिकार!

जुग री जुगत जोरगौ मांड्यौ

जुग नांहीं रिझवार

बहती बेळा में बह जावै

कुण झालै पतवार!

रीझणिये री रीझ देख मत

देख जूण रौ सार

पिणिहारी ठालै घट ऊभी

थूं ऊभी मझधार!

कवियां आछी करी रे कतार

थारै सिरजण री बळिहार!

स्रोत
  • पोथी : परम्परा ,
  • सिरजक : नारायण सिंघ भाटी ,
  • संपादक : नारायण सिंघ भाटी
जुड़्योड़ा विसै