आपां हां

सिंथेसाइजर

इण सिंथेटिक सभ्यता रा-

जिका दूजां रै सुरां में

सुर तो मिलावां,

दूजां री लय-ताल में

खुद नै ढाळां

सामल बाजा बण बाजां-

पण खुद रो संगीत

नीं रच पावां

खुद री लय-ताल

नीं पकड़ पावां

बस, पराई आंगळयां सूं

बाजता जावां, बाजता जावां

बस, बाजता जावां!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
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