घूघरिया घमकाती सिंझ्या

घूमर घाली

छम-छम-छम!

झालर -संखनगाड़ा बाज्या

ढम-ढमा-ढम

ढम-ढम-ढम!

घर-मिंदर-डूंगर-रिंदरोही

जगती-तळ अेकै सुर बोल्या-

थम-थम-थम!

पण मदगैली तो

थमी जणां

जद केस खुल्या

मोती खिंडग्या...

भोळा लोगां रै

भावूं तो बस

रात पड़ी

तारा

खिलग्या!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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