सूखग्यो रूंख

जो कदी हरयो-भरयो रैवतो

छियां देंवतो

पंखेरू डाळ पे बैठ’र गाता

मीठा फळां रो सुवाद

मिनख कदै नीं भूल पाता

अबै नीं रैया पानड़ा

बच्योड़ो कोरो ठूंठ

स्यात् मिनख सूं

रूंख गयो है रूठ!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली तिमाही पत्रिका ,
  • सिरजक : रमेश ‘मयंक’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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