सुख रै

सैंचत्रण में

चित रै चौफेर रैवै

पण

नीं लाधै

घणो जोयां

क्यूं के

आंनैं पकड़ां किंयां?

आज री दोस्ती नै

मिनख री छिंयां!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सूरजमल राव ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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