जग में वो ही है बड़भागी, जिण रै लौ सेवा री लागी।

खावै हाथी, खावै घोड़ा, खावै कीड़ी कीड़ा,

भर्‌यो पेट धरम रौ जाणै वो धरती री पीड़ा,

मोटो वो ही है जो त्यागी, जिण रै लौ सेवा री लागी।

मिनख —मिनख में फरक इत्तो ही, अेक स्वारथ में लागै,

दूजो परमारथ करणै रौ जतन करै, नै जागै,

वो ही सांचो बैरागी, जिण रै लौ सेवा री लागी।

जो दूजां नै दुख दे देकर, धन दौलत हथियावै,

करणी रौ फळ आखर पावै, परभौ भी बिगड़ावै,

बणसी कदे नै अैड़ो दागी, जिण रै लौ सेवा री लागी।

जनम लियौ वा कौम बड़ी है, सेवा उण री करजे,

उण री सेवा करतां जीबो, उण री खातर मरजे,

उण रा मत बणजो थे बागी, जिण रै लौ सेवा री लागी।

स्रोत
  • सिरजक : जयनारायण व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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