एक
रेशम री डोर
बंधी ही
थारे म्हारै बिचाळै
टूट न जावै कदे
सोचते ई लागतो डर
पर तू
डोर रो एक-एक तार
धीरे-धीरे
मांय-ई-मांय
निर्दयता सूं
इयां टूक-टूक कर नांख्यो
के आज जद
तोड़्यौ तार
तो दरद तो होयो
पर बितणौ नीं
जितणौ सोच्यो हो!