एक

रेशम री डोर

बंधी ही

थारे म्हारै बिचाळै

टूट जावै कदे

सोचते लागतो डर

पर तू

डोर रो एक-एक तार

धीरे-धीरे

मांय-ई-मांय

निर्दयता सूं

इयां टूक-टूक कर नांख्यो

के आज जद

तोड़्यौ तार

तो दरद तो होयो

पर बितणौ नीं

जितणौ सोच्यो हो!

स्रोत
  • सिरजक : नीलम पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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