वां

कद सोच्यो

कै-

गठजोड़ो खुलतांई

रणवासै रचीजसी

स्वारथ रा दांवपेंच

जीवण रौ आसरौ

चाणचक-

छूट जावैला

सासरौ।

राजपाठ छोड'र

जावणौ पड़सी

जंगळ मांय

फिरणौ पड़सी

अळवाणौ

अर

खावणा पड़सी

भीलणी रा

अैंठवाड़ा बोर।

जग रा तारणहार नै

एक मछुआरौ

करासी नदी पार

लगौलग-

दुस्टां रौ दांव

अजै है

पंखेरूवां रै

काळजै में

जटायू रौ घाव।

थारी

आंख्यां रा आंसू

बूझाय सकै

लंका री लाय

पण

तानां दैवणिया

नीं जाणै-

अबला रौ दरद

तद

करणौ इज पड़ै

अगन-सिनान।

समैसार

अंतस-उणियार

उणरी

हुयगी पारख

जाणै सै संसार

पण

अजै बाकी है-

पारख थारी

अवस आवैला चोड़ै

दौगला माणस री मनगत सारी।

स्रोत
  • सिरजक : गजेसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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