1 सीप

बिदा लेतां रात उसा नै कैवै—
‘काल अठै ही भलो’
उड़ती सी उसा सूं सूरज सुणै—
‘काल अठै ही भलो’
आंख्यां सूं अदीठ होतां सूरज सूं सांझ अंत बचन लेवै—
‘काल अठै ही भलो’


2 सीप

डाळ्यां सूं लाग्या हर्‌‌‌या हर्‌या पान
आमी सामी झांक चंचळ हुवै
आपस में मिलण नै ललचावै
पण आप आप री ठोड़ न छोड़ै
सूका पान दूर दूर सूं आय’र
आपस में गळै मिळै
साथी, आव झड़ां...!


3 सीप

अंधेरै सूं उजाळै में आतां ही
बाळक रोयो‌‌—
इण सूं जीवण रो अरथ लगा
लोग हंस्या
धीरै धीरै देखादेखी
सागी बाळक उजाळै रो आदी बण्यो
एक दिन चाणचक
अंधेरो आतां देख
सागी बाळक
उजाळै वास्तै रोवण लाग्यो...!

4 सीप

तपे ताकलै सी तेज सूरज री किरणां री लौ
आपरै गळै सूं उतार
काळजै में फाला उपाड़
दिन भर धूणी रमा
रात नै इमरत बरसावै
उण चांद नै जगत चोर कैवै!

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
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