जद-

घूमती दुनिया री भांत

फिरकणी बणी थूं

मुळक’र साम्हीं आई

म्हनैं लाग्यो- थारा होठां पे गुलाब आग्यो

थारा मुळकबा पे

चिड़कली री भांत चहकबा पे

पूरो कांकड़ चंदण री सौरम सूं महकग्यो

खेत-खेत में हेत रो वसंत असर दिखायग्यो।

म्हैं बसाय लीधो थारा गुलाबी वसंत नैं

म्हारा हिवड़ा री वासंती डाबी में

थिर छिब रै रूप में

अर चालतो रैयो आकरी धूप में।

अबै थूं म्हारै अंतस में जीवै है

म्हैं सीखग्यो ओळ्यूं अंवेरणो

जिनगाणी री नाव नैं, हेत री पतवार सूं खेवणो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर