कळी फूल में रूप बदळगी

भंवरी री सै बात समझगी

देखौ रुत रौ अेक अचंभौ-

दोबड़ी दरखत होगी रे

बीज में बरकत होगी रे

नुगरौ पवन कुचरणीगारौ

हर भौंके छेड़ै उणियारौ

सांसां रे संग जा सामेळै-

सरबरा सरबत होगी रे

बीज में बरकत होगी रे

तन री तिरस जेठ री धरती

जुगां जुगां सूं रैगो परती

मीत मिळण री बेळ सुबेळा-

उमर ही तरपत होगी रे

बीज में बरकत होगी रे

मूंघौ है पण हंस बतळाणौ

लोगां रे बिच कुबद कमाणौ

देखो जग री अबखो बांणी-

कांकरी परबत होगी रे

बीज में बरकत होगी रे

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कल्याण सिंघ राजावत ,
  • संपादक : तेज सिंघ जोधा