धरती रै आंगणै पड़्यो बीज बोल्यो—

सुण मिनख! कुदरत बड़ी जब्बर है।

सार नै खींच’र म्हारै मैं बांध दियो

समझ नै नितार’र मन्नै काम मिलै।

मुं’माग्यो बर मिल सीं।

धरती धन जण सी।

सार सैंचनण हुसी।

मेहनत मुळक’सी।

मानखो पूजीज ही।

नूवौ बगत थारी आतमा मैं जाग सी—

जुग बदळसी। धरती’कै आंगणै पड़्यो बीज बोल्यो।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : विश्वम्भर प्रसाद शर्मा ‘विद्यार्थी’ ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
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