भांत-भांत रा थाळ सजाया

नगर सेठ कर चाव

माया री छांयां में आयो

गुरुदेव रै ठांव

दो रोटी मेली थाळी में

अर सरदा रो साग

प्रेम भगत कारीगर आयो

तज माया री राग

ध्यान लीन आसण पर बैठ्या

आप तपोधन नाथ

हाथ जोड़ दोनूं जण ऊभा

नैण निवायां माथ

जोत रूप गरू नैण उघाड्या

मुख लाली री रेख

बायर भीतर री बाणी ज्यूं

अेक भई रस देख

घणै हेत सैं भोग लगायो

ले रोटी निज हाथ

पुळक पसीज्यो अंग भगत रो

चरण छुवायो माथ

नगर सेठ मन रोग समायो

करी बीनती दीन

सेवग रा यै थाळ संजोया

किण बिध देव मलीन

इमरत री बाणी गरु बोल्या

सेठ ल्या मन खेद

बायर भीतर री आंख्यां सँ

देख आज यो भेद ज्यारा

रोटी रो जद टुकड़ो तोड़्यो

सोरम व्यापी पून

अवरत धार दूध री चाली

इमरत घोळ्यो चून

लाडू रो जद टुकड़ो तोड़्यो

गद-गद निसरयो खून

सार कमाई रो जस गायो

अंबर रमती पून

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : मनोहर शर्मा ,
  • संपादक : अनिल गुप्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा
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