सपनो आयो एक घणो जबरो रे

सपनो आयो

काळी पीळी आंधी ऊठी

चाल्यो सूंट घणो जबरो रे

सपनो आयो

थळ को होग्यो जळ,थळ जळ को

संपट पाट घणो जबरो रे

सपनो आयो

डूंगर टूट जमीं में मिळग्या

देख्यो ख्याल घणो जबरो रे

सपनो आयो

चोरस भौम में डूंगर बण ग्या

माया जाळ घणो जबरो रे

सपनो आयो

टीबा ऊठ नदी बै लागी

फैल्यो पाट घणो जबरो रे

सपनो आयो

नदिया सूख'र टीबा बणग्या

बेढब भूड घणो जबरो रे

सपनो आयो

ऊंचा छा सो नीचा उतर्‌या

निचलो ठाठ घणो जबरो रे

सपनो आयो

टणका छा सो निमला होग्या

निमला राज घणो जबरो रे

सपनो आयो

म्हैलां की तो टपरी बजगी

टपरी म्हैल घणो जबरो रे

सपनो आयो

तोसाखाना खाली होग्या

खाली पेट भर्‌यो जबरो रे

सपनो आयो

म्हांको सपनो सांचो होसी

समझो भेद घणो जबरो रे

सपनो आयो

स्रोत
  • पोथी : आधुनिक राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : हीरालाल सास्त्री
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