स्हैरां री सड़कां पे
रॉकेट री रफ्तार सूं
सरपट दौड़तां-दौड़तां
समाजवाद रो सफेदझक्क,
पण स्याणी कामधेनु नै
देस रे गांव-गांव
घर-घर मांय
खूंटै बांध पाओला...
इण चीज रो
म्हारै मन में
जाणै क्यूं
डबको है!
खेत री
पाळियां पे
उड़कता-लुड़कता करसां री
माळी हालत रो भूगोळ
आकास में
उड़तां-उड़तां
बांच लेवणी
घणो ई
अबको है।