समै आपरै इसारां माथै

मिनख नै नचावै है।

किणीं नै बणावे किणीं नै मिटावै है

ज़िंदगी री कैड़ी-कैड़ी कवितावां बणावै है।

इण रै साथै जको चालै

पर उणां री पड़ जावै

जको चालै कोनी साथै इण रै

ज़िंदगी मांय फोड़ा पावै है।

इण री धारा जको जाणै

सफल वो हो जावै

मिनख थारा मिनख जमारां

पछै बाट किणी जोवे है।

ज़िंदगी है मोटो रस्तो

जिण मांय कांटा घणां सारा

कांटा आगाळिया ही

पार पड़सी मिनख जमारा मांय।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : उगमसिंह राजपुरोहित 'दिलीप' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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