समूळी सगती

म्हारी आंख्यां साम्हीं

सांवट’र चढ़ बैठ्यो

म्हारी छाती-

हाथां दिया धमीड़

जीमतै री थाळी खोस

खायग्या म्हारी पांती!

बरज्यो बकार्यो तो

हाका कर्या

म्हारी बुसक्यां देख

परचावण ढूक्या

बगत री मार है

समो भोत बळवान है

इण रै आगै

बिसात काईं मिनख री।

म्हैं मनां सोचूं

उथळूं घट में

सिरकै क्यूं नीं

जे सिरकै नीं तो

सगत रै हाथ

क्यूं है बगत?

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम