कोई साच कैवै तो

वो रिसीज जावै

पण साच नै झूठ कैय

बरी होय जावै है

जदै कोई

साच री आवाज उठावै है

आवाज दबाय

दरिंदा गिटक जावै है

भींतां-आंगणां मांय

ऊग जावै है

जदै भाई-भाई रा रिस्ता

बाजारी बण जावै है

सनेव, संबंधा मांय जदै

तावड़ो आवै है

सुवारथ खातर सगळा

बौपारी बण जावै है

किणी सूं अबै

दु:ख दरद री बात करां तो

ज़िंदगी रा हर पल

अखबारी बण जावै है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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