स्याळू रात

ठंडी पून

गवाड़ में मून

ऊन रा गाभा

कूंडियै में बळती आग

डील तापता मिनख

करै हा निंदा सियाळै री

अर वारणा लेवै हा ऊनाळै रा

कोई कैवै ऊनाळो चोखो हुवै

सोय सकां बारै

जचै जणां ही न्हाय सकां

दिन ही ऊगै बेगो

अर रैवां सोरा

जियां आयो ऊनाळो

कोसण लागा ऊनाळै नैं

बै मिनख

कोई काढ़ै तावड़ै नैं गाळ

कोई कैवै पसीनो माड़ो

कोई कैवै राम जी सिरज्यो क्यूं

ईं ऊनाळै नैं

अर क्यूं ही बणाई बळती

लाय मार देसी मानखै नैं

भसम कर देसी रूंखड़ा

कांईंठा कद आसी चौमासो

हुवै कोनी कोई रुत

चौमासै जैड़ी

चौमासो हुवै स्सै सूं चावो

चोखो हुवै मेह

च्यारूंमेर हरियाळी

जीमण नैं देसी साग

तिरियां-मिरियां तालर

पीवण नैं पालर

चौमासै री बात न्यारी

अडीकतां-अडीकतां

चौमासो आयग्यो

मानखै रै चौखळै

अर हुगी बिरखा

चोखा न्हाया मेह में

सावण नैं सरायो

जियां खिंडिया जीभूत

तपण लाग्यो तावड़ो

ऊमस सूं हुया आखता

मानखो कोसण लाग्यो

चौमासै नैं

कैई कैवै चौमासै री गरमी

स्सै सूं कोजी

कोई कैवै गळियां भरीज ज्या

कादै सूं

देखै जठैई मेळा

माछर माखियां रा

अर फिड़कलां रो जमघट

स्सै सूं चोखी रुत तो हुवै

सियाळौ

चौखा सूता रैवो गूदड़ा में

नित नया पकवान

जिमो जितो पच ज्यावै

जचा’र लागै भूख

पसीनो हुवै ऊमस

सियाळो तो सियाळो हुवै,

अेक-अेक कर पळटती

रूतां नैं तो लागै जेज,

पण मिनख नैं पळटतां,

जेज नीं लागै।

स्रोत
  • पोथी : भींत भरोसै री ,
  • सिरजक : सत्येंद्र चारण ,
  • प्रकाशक : वेरा प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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