जठै जावां वठै

टाबर, मिनख, बूढा

अेक सूं लेयर अस्सी तांई

रोवै आप-आपरा रोवणा...

रोवै रोवणा

बाप बेटै रा

बेटी मां रा

पोतो दादै रा

सगळा दुखी होयग्या,

पण दुख छेकड़ किण बात रो

बात कोई नीं जाणै!

नेता वोटर सूं

रोगी डॉक्टर सूं

जातरी मोटर सूं

सगळा रोवणा रोवता लागै...

च्यारूंमेर है रोवणो रोवणो!

इण रोवणै नै देख’र

लखावै कै जमराज

आपरो की कारज

हळको कर लियो है

सेल्फ सर्विस सूंपी है

अठै रोयलो सगळा रोवणा...

जित्ता रोय सको

रोयलो रोवणा

अखाड़ो अठै क्यूं?

अकल माथै भाठा क्यूं??

अेक डोकरो केवै

‘रोवणो तो आज फैसन है सा..!'

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : गौरीशंकर प्रजापत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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