रूंख रोप्या तो घणा ही
बिरछ लगाया तो बो’ळा
अेवड़ तो कोनी बड़्यो
ठूँठा तो कोनी आया
जद पण पानड़ां कानड़ा क्यूं काढ्यानी!
जद कणी बाढ्या नीं
रूखाळा राख्योड़ा हा
ढैरा ऊपर नाख्योड़ो हा
पण पेड़ पनप्या कोनी
खात दियोड़ा ही
बात कियोड़ी ही
सुर रो अबळेखो प्रगट्यो
पनपै किंयां
जद हुवै इयां
पांगरणै सूं पैली बुरड़ लेवै
ऊपर सूं नीचै झूरड़ लेवै
बध्यां पैली काट लेवै
टोपो चाटै ज्यूं चाट लेवै
कोई करै पग पीटिया तो
आपस में बांट लेवै
जद करै कोई बूझना
लूचाली का दावो बलावै
का कै’वै आयो फाको
जिकै रो कोई नीं चांको
रूंख लागता पण कींकर
जद पीग्यो नाको।