रेत रो गूदड़ बिछा'र

सुत्यो देख्यो थार

टोकी रै स्हारै

धोळै दोपारै!

दो चार सूखा बूई-फोग

कोई जिनावर कोई लोग

अेक दो नांव रा हरियल रूंख

पड़ाल री ओट बैठी भूख!

घास रो पानड़ो कोनी इलो

आभै रो मूंडो हुग्यो लीलो

ताल रै कुंड में पड़गी रेत

बाड़ खायग्या भूखा खेत!

भूखो धोरियो निकळी आंत

सड़क काळती काढै दांत

मोटो'ड़ो धोरियो धूड़ नाखै

काळी सूगली सड़कड़ी माथै.!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कान्हा शर्मा
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