मन की रीती पाटी पै
माँडबो चाह्यो-
रस भर्या गीत,
मीठा-सा,
जाणै कोयल का बोल।
पण अण चाह्याँ
अण जाण्याँ
आण पड़्यो पाटी पै
मोटो सो खोळ।
च्यारूँ मेर फैलग्यो, धूंधाड़ो गहरो।
सासाँ मै भरगी कड़ी कसेली बास।
पण, चालतो हाथ, चालतो'ई जावै छै...
पाटी तो ढँकगी, खोळा पै मँडै छै,
रींगट्याँ ईं रींगट्या॥
आडी, डोडी, ऊभी,
रूप नै रंग,
सकल नै सूरत
मँडती ई जावै छै
ऊपर का खोळा पै।
पाटी तो रोती छै
धुपी, पुंछी, साफ॥