वां री मीठी बातां मांय

नी जाणै क्यूं

बदबू आवण लागी है

बोदी-राजनीति री

क्यूंके-

पैली जद म्हैं सिलाम करया करतौ

वै म्हनैं फालतू जाणनै

दुतकार दिया करता

अर अबै जद म्हैं वां नै

नकार दीन्या

तौ वै मुळकीजता-थका

म्हारै सूं लिपट जावै

किसी राजनीत है!

वियां म्है आज भी

‘आम-मिनख’ हूं

कालै भी हो

आज भी म्हैं पेट रै खातर सोचूं हूं

कालै भी सोच्या करतौ

इण दायरा सूं बारै वै नाळ सकै

ज्यां रौ पेट भरयोड़ो होवै

उंची राजनीत

म्हैं कदै नी समझ सक्यौ

पण, वां रौ अर म्हारौ

सिलामी-रिस्तो

हाल-तांई कायम है।

स्रोत
  • पोथी : मिनख ,
  • सिरजक : विनोद सोमानी 'हंस' ,
  • प्रकाशक : विद्या प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1