वां री मीठी बातां मांय
नी जाणै क्यूं
बदबू आवण लागी है
बोदी-राजनीति री
क्यूंके-
पैली जद म्हैं सिलाम करया करतौ
वै म्हनैं फालतू जाणनै
दुतकार दिया करता ।
अर अबै जद म्हैं वां नै
नकार दीन्या
तौ वै मुळकीजता-थका
म्हारै सूं लिपट जावै
आ किसी राजनीत है!
वियां म्है आज भी
‘आम-मिनख’ हूं
कालै भी हो
आज भी म्हैं पेट रै खातर सोचूं हूं
कालै भी सोच्या करतौ
इण दायरा सूं बारै वै नाळ सकै
ज्यां रौ पेट भरयोड़ो होवै
आ उंची राजनीत
म्हैं कदै नी समझ सक्यौ
पण, वां रौ अर म्हारौ
सिलामी-रिस्तो
हाल-तांई कायम है।