तूं

मत ऊगलै अपणा मूंडा सूं

नींबूण का रस नांई

खटास भरया सबद

न्ह तो अेक दिन

प्रीत अर रीत को दूध

फाट ज्यागो

अेक छोटा सा’क / छणीकस्या’क छांटा सूं

फेरूं

कस्योई लगाज्यै

रिस्तो जमाबा को जावण

न्ह जमैगो रिस्तो

न्ह बलोबा में आवैगो रिस्तेदारी को दीं

न्ह खडैगो सगपण को घी

अर

कदी न्ह खडैगी प्रेम अर मीठास

बना आंटी का रीत भरया रायता कै लेखै

शीतळा छ्याछ!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : शिवचरण सेन ‘शिवा’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ
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