काल तांई जिको
उफणतो हो
थारै-म्हारै बिचाळै
अेक महासागर
आज
उण माथै जमगी है
बरफ री
अेक मोटी चादर
दूर-दूर तांई
अेक अणटूटतो सरणाटो
अणभोग्यो सूनोपण
अणसैयो अणजाणपणो
कांई हुवै
जे कदी-कदास
दम तोड़ती कोई माछली
सांस लेवण नै
इण जाडी पड़त नैं तोड़’र
मूंडो बारै काढ लै तो?
पण दूजै ई पल
बा ई
जानलेवी खामोसी
बा ई
दमघोटू-सूनवाड़
बा ई
मुड़दा चुप्पी
बा ई
जीवत घुटण।