बेटी रै ब्याव में

थे नीं पूग सक्या,

पण दोगाचिंती रै बिचाळै

थारी आत्मा झिंझोड़्यो

थारै मनड़ै नै!

बुलावै रै बदळै

थारो बान पूगग्यो

थारी हाजरी भुगता दी

थारै बान..

पण म्हूं लखायो

जाणै थे रीत निभाई दिसै!

कै बान तो होवै

उधारी हांती

जठै नीं बणै

बठै पड़ै

पुगावणो...

थे रीत निभावंता रैया

म्हूं प्रीत पाळतो रैयो॥

स्रोत
  • सिरजक : दीनदयाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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