आ जन कवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी
कोई लाख जतन कर हारै, वा समझै साच सुणांणी॥
कोई मार कूट धमकाई, धन कुरब धांम ललचाई
सौ जुग रा जुलमी खपग्या, इण करी नहीं सुणवाई,
आखड़िया सौ आथड़िया, इण माथै धूंस जमांणी,
आ जनकवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी।
जद गोरी हुकमत अड़ती, सड़कां पर गोळयां झड़ती,
जेळां में चौखट चढ़ियां, मोरां री खाल उधड़ती,
पिण ‘जै भारत’ घुरराता, नरसिंह जुत्योड़ा घांणी,
आ जनकवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी।
तरवार चली इण लारै, उण जुग जुन री पौ'बारै,
जद इण पर जुलम जतायौ, पात्यां पिघळी फटकारै,
धन धरती रा धोड़ती, धींगाई धरी अड़ांणै,
आ जनकवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी।
आ चोट लग्यां चमकै है, निरणां पेटां दमकै है,
फाटा गाभां नै रण रा, झंड़ा गिणत गमकै है,
इण रा घण टाबर जांणै, विपतां माथै मुस्कांणी,
आ जनकवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी।
आ भूला समझावैला, ऊजड़ खड़तां पालैला,
पूठै इण घड़ी अगाड़ी, होळी, हालै, हालैला,
जुग जुग इण री भावी है, सिलगांणी वळै बणांणी,
आ जनकवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी।
गायक इक दिन मिट जासी, पिण अेड़ा गीत बणासी,
जन जन रै कंठां रमसी, पीढ़ी दर पीढ़ी गासी,
आ काया तौ कवि री है, पिण जनता री जुग वांणी,
आ जनकवि री जुग वांणी, आ कदै न चुप रह जांणी,
कोई लाख जतन कर हारै, आ समझै साच सुणांणी॥