दो डाळखा रे टूटणै ऊं
आ खेजड़ो कितरौ पीळौ पड़ेला अजै
के अखबार अर पोथियां री जिल्द ई पीळी पड़गी,
उणरै दियोड़ा स्कार्फां ऊं आवण लागी है
ऊन रै सड़ण री गंध,
जितरा पैन दिया हा उण
वां सबां रा ढकणा म्हें गुमाया दीना।
एक खुणै में लाय उठती रेवै,
उण री गैर हाजरी में...
सब उण री हाजरी जैड़ो तो कोनीं,
पण सोचूं के वा पाछौ आवैला,
वा ही ठीक करैला म्हारे पीळैपन नै।