थारी समझदारी में

थारी स्याणप में

कोई विघन ना पड़जै

थारै जीवण रै दिमागी मारग माथै

म्हारी भावना रा कांकरा ना खिंडज्यै

बस वास्ते

मैं लिखणी ही छोड़ दी आजकाल

बै भोळी स्याणी कविता

जिकी नै पढ'र

तू फट कैय देवंतो-

'आ किडीक बात ही!'

स्रोत
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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